झांसी जहाँ कई लोग आज भी बेटा और बेटी में भेद करते हैं। एक बेटे की चाहत में लोग सात-सात बेटियां पैदा कर लेते हैं वही जिनके सात बेटे हैं, उनसे मां-बाप संभल नहीं रहे हैं। झांसी, ललितपुर में कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां बेटों ने मां-बाप को बुढ़ापे में घर से बाहर निकाल दिया। बेटों के उत्पीड़न का शिकार मां-बाप डिप्रेशन में चले गए हैं। इसके बाद बेटियां ही बुढ़ापे की लाठी बनकर माता-पिता की सेवा कर रही हैं।

कई लोग आज भी बेटा और बेटी में भेद करते हैं। पिछले कुछ दिनों में झांसी में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां बेटी पैदा होने पर उसे मरने के लिए सड़क पर फेंक दिया गया। किसी नवजात बच्ची को कुत्तों ने नोंचकर मरणासन्न कर दिया तो किसी की सांसें अस्पताल पहुंचने तक थम गईं। मगर समाज में कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां बेटों से ज्यादा बेटियां मां-बाप की सेवा कर रही हैं।

परिजनों ने बड़े लाड़ प्यार से पाल पोसकर बेटों को बड़ा किया मगर बुजुर्ग होने पर जब बेटों ने मां-बाप को घर से बाहर निकाल दिया तो वह डिप्रेशन का शिकार हो गए। उनका इलाज मनोचिकित्सकों के पास चल रहा है। वह अपनी पीड़ा बताते-बताते डॉक्टर के सामने फफककर रोने लगते हैं। कई परिजनों को बेटों ने घर से बाहर निकाल दिया है तो कोई मांग-मांग कर खाना खाने को मजबूर है। वहीं, बेटियां मां-बाप के इलाज से लेकर आर्थिक सहायता तक कर रही हैं। पिछले पांच सालों में बुजुर्गों में 30 फीसदी डिप्रेशन बढ़ा
मनोचिकित्सकों के अनुसार पिछले पांच सालों में झांसी में बुजुर्गों में डिप्रेशन के मामलों में 25 से 30 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। कई मामलों में माता-पिता बेटों के सताए हुए आते हैं। 

किसी ने प्रॉपर्टी अपने नाम लिखवाकर परिजनों को घर से निकाल दिया, तो कोई रोजाना मारपीट का शिकार हो रहे हैं। कई मामलों में तो बुजुर्ग मां-बाप बेटों की अनदेखी से डिप्रेशन का शिकार हो गए। डॉ. शिकाफा का कहना है कि मॉर्डन लाइफ स्टाइल और सोशल मीडिया के दौर में बच्चे माता-पिता को नजरअंदाज कर रहे हैं। ज्यादातर समय घर के बाहर गुजरता है। फिर जो समय घर में परिजनों के साथ बातचीत करने को होता है, उसमें बच्चे मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। इससे बुजुर्ग अकेलापन महसूस करने लगते हैं और धीरे-धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं।

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