राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बेहद चौंकाने वाला बयान दिया है। आयोग ने कहा, 'जो भी महिला लिव-इन रिलेशनशिप में रहती हैं, रखैल की तरह मानी जाती हैं।' आयोग ने ये भी कहा कि ऐसे संबंधों पर रोक लगाने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है। इन पर तुरंत ही रोक लगनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए आयोग ने कहा कि इस तरह का पाशविक जीवन संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं। एक महिला को एक रखैल के रूप में रखना उसकी गरिमा के खिलाफ है क्योंकि यह शब्द चरित्र हनन के समान है। ये एक घृणित संबोधन है। एक महिला के लिए एक रखैल के रूप में जीवन बिल्कुल भी सही नहीं कहा जा सकता, ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी महिलाएं अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकती हैं।

ऐसे में आयोग ने राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए और समाज में महिलाओं के सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने की अनुशंसा की है। आयोग के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश टाटिया और सदस्य जस्टिस महेश चंद शर्मा की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया, 'जागरूकता अभियानों के माध्यम से महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप के नुकसान से बचाना सरकार और मानवाधिकार संगठनों की जिम्मेदारी है।'

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