संक्रमण फैलने के बाद ये पहली बार है जब चीन में कोई नया मामला सामने नहीं आया. चीन के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. हालांकि चीन में 34 ऐसे नए मामले उन लोगों में दर्ज किए गए जो हाल ही में विदेश से वापस लौटे हैं.
यानी एक तरफ़ चीन जहां कोरोना से धीरे-धीरे उबरने लगा है वहीं इटली अब भी इससे बुरी तरह जूझ रहा है. संक्रमण के केंद्र चीन ने कोरोना से लड़ने के लिए कई अभूतपूर्व क़दम उठाए थे.
इन उपायों में पूरे हूबे प्रांत और यहां रहने वाले 5.6 करोड़ लोगों को क्वरंटीइन करने (घर से बाहर निकलने और किसी से मिलने जैसी पाबंदियां लगाना) और इस वायरस की चपेट में आए लोगों के इलाज के लिए महज 10 दिनों में एक अस्थायी अस्पताल का निर्माण करना शामिल था.
इन क़दमों से चीन में यह वायरस क़ाबू में आता दिखा लेकिन बाक़ी की दुनिया में यह दो हफ़्तों में ही 13 गुना बढ़ गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख टेड्रस एडॉनम ने कोरोना वायरस को एक पैनडेमिक (एक ऐसी महामारी जो दुनिया के बड़े हिस्से में फैल चुकी हो) घोषित करते हुए कहा कि इससे निबटने के लिए 'दुनिया भर के देशों को तत्काल और आक्रामक क़दम' उठाने चाहिए.
हालांकि जानकारों के बीच एक विवाद ये भी है कि क्या लोकतांत्रिक देशों में भी चीन जैसी पाबंदियां लगा पाना संभव है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाहकार डॉक्टर ब्रूस अलवार्ड का कहना है कि दुनिया ने चीन के अनुभव के असली सबक को अभी तक नहीं सीखा है.
उन्होंने कहा, "लोगों को समझाया गया है कि हम किस तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं. उन्हें समझाया गया है कि यह कितना गंभीर है और उन्हें इस लायक बनाया गया है कि वो सरकार के साथ मिलकर उठाए गए क़दमों के प्रभावी होने के लिए काम कर सकें."

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