रूस के हमले के चलते 15 हजार से ज्यादा भारतीय स्टूडेंट यूक्रेन में फंस गए हैं, इनमें से ज्यादातर मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन गए स्टूडेंट्स में से 1500 से अधिक को तो वतन वापस लाया चुका है, शेष को लाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास जारी हैं थे. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल हजारों छात्र यूक्रेन, रूस, बेलारूस जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई क्यों करने जाते हैं.
यूक्रेन और रुस के बीच चल रही लड़ाई के बीच कुछ छात्रों ने मंगलवार को दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचकर राहत की सांस ली और अपने अनुभव बाँटे . वे बताते हैं जब 2016 में नीट की परीक्षा जब पास नहीं कर पाए तो डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए यूक्रेन चले गए. वह MBBS की चार साल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और दो साल बाकी हैं. वह कहते हैं,' यूक्रेन में MBBS की पढ़ाई का खर्चाा 25 से 30 लाख रुपये आता है जबकि भारत में सरकारी सीटें बहुत कम हैं और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो जाता है इसलिए हम यूक्रेन गए थे. इनके जैसे करीब 20 हजार छात्र हर साल रूस, यूक्रेन, बेलारूस, रोमानिया, जार्जिया जैसे देशों में MBBS करने क्यों जाते हैं, पिछले कई बर्षों से MBBS के छात्रों का दाखिला रूस, बेलारूस और यूक्रेन जैसे देशों में करवा रही एक एजेंसी के मुताबिक, इसकी सबसे बड़ी वजह सस्ती फीस और अच्छा आधारभूत ढांचा है.
मेडिकल पढ़ाई के लिए रूस, बेलारूस और यूक्रेन जैसे देशों में जाने की वजहें
-इन देशों में 6 साल का MBBS की ट्यूशन फीस से लेकर रहने खाने का खर्च महज 25 से 30 लाख में पूरा हो जाता है
-अलग अलग देशों की यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के NEET क्वालिफाई होना जरुरी है
-इस साल बाहर देशों में MBBS की पढ़ाई के लिए जनरल कैटगरी को NEET में 137 नंबर लाने जरूरी हैं..
एजेंसी के अनुसार 'भारत में बच्चों के लिए MBBS बच्चों के लिए करवाने के लिए आधारभूत ढ़ांचा नहीं है. यहां केवल 75 हजार सीट हैं जबकि NEET में 18 लाख छात्र बैठते हैं. दूसरे वहां छह साल में 25 लाख रुपए में MBBS किया जा सकता है. भारत में यह स्थिति तब है जब 2014 में ही सरकार ने देशभर में 157 मेडिकल कॉलेज और 15700 सीटें बढ़ाने की बात कही थी लेकिन अब तक 46 मेडिकल कॉलेज ही संचालित हो चुके हैं. इन कॉलेजों में भी फैकल्टी की खासी कमी है. भारत में MBBS की 75 हजार सीट हैं, जिनमें सरकारी सीटें महज 45 हजार ही हैं.
ऐसे में आने वाले दिनों में मेडिकल के स्टूडेंट, क्या इसी तरह मजबूरी में विदेश पढ़ने जाते रहेंगे इसके जवाब में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) गवर्निंग बॉडी के पूर्व सदस्य डॉ. राजीव सूद के मुताबिक मेडीकल कॉलेज में पढ़ाने वाले टीचर की बेहद कमी है. डॉ. सूद के अनुसार, हमारा मेडिकल बजट महज GDP का 1 फीसदी है. दूसरी बात यह कि पुंडुच्चेरी जैसे छोटे राज्य/यूटी में 6 मेडिकल कॉलेज हैं. इनस्पेक्शन होता है तो दूसरे जिले से पेशेंट लाना पड़ता है, इसके पीछे राजनीतिक कारण है. तीसरा तमिलनाडु जैसे राज्यों मे कैप लगा रखा है कि MBBS करने के बाद वहां 5 साल सर्विस देना पड़ेगा.हालांकि रुस ,यूक्रेन और विदेशी यूनिवर्सिटी से MBBS करने पर उनको भारत में प्रैक्टिस करने के लिए NEXT नाम की परीक्षा पास करना जरूरी है लेकिन भारत में मेडिकल कॉलेज से लेकर दाखिला और आरक्षण के बाबत बनी पॉलिसी को भी तर्किक करने की जरूरत है.
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