व्यावहारिक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस संकट के इस दौर में मनरेगा मजदूरों को 20 दिन की मजदूरी के बराबर धन उनके खातों में सीधे हस्तांतरित करने की सिफारिश की है। उनका यह भी कहना है कि इस समय राजकोषीय घाटे की अधिक चिंता करने के बजाय सरकार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को कुछ पैसा और पर्याप्त राशन उपलब्ध कराने के प्रबंध करे।
बेंगलुरू स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक्स चेंज के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डॉ. प्रमोद कुमार ने कहा, 'इस समय आवश्यकता है कि जो भी प्रभावित लोग हैं, सरकार उन तक पर्याप्त राशन पहुंचाए और डीबीटी के जरिए पैसा उनके खाते में डाले।
उनका कहना है कि इस समय काम-धाम ठप है ऐसे में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की दर बढ़ाने से उन्हें तत्काल कोई राहत नहीं मिलने वाली है। उनके खाते में धन होने से पाबंदी हटने के बाद बाजार में मांग पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
कुमार ने कहा, 'सरकार ने राहत पैकेज में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) के तहत पंजीकृत मजदूरों की मजदूरी 20 रुपये बढ़ाकर 202 रुपये की है। लेकिन लॉकडाउन के दौरान कोई काम नहीं हो रहा और आने वाले समय में अनिश्चितता की स्थिति है, इसको देखते हुए मजदूरी बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।
नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लायड एकोनामिक रिसर्च के डा. सुदिप्तो मंडल ने भी कहा, 'इस समय सरकार को राजकोषीय घाटे पर चिंता किये बिना जितना संभव हो जरूरतमंदों की जेब में पैसा और खाने का सामान पहुंचाने की जरूरत है। इसके लिये अगर जरूरी हो तो केंद्र सरकार स्वयं या राज्यों को अतिरिक्त उधारी लेने की अनुमति दे सकती है।
मंडल ने भी मनरेगा श्रमिकों के लिए मजदूरी बढ़ाए जाने के बारे में कहा, 'सरकार जल्दबाजी में राहत पैकेज लेकर आई जिसके कारण इस पर विचार नहीं किया गया। बेहतर यही है कि उन्हें कुछ दिनों की एकमुश्त राशि दी जाए। सरकार ने बजट में मनरेगा के लिये इसका प्रावधान कर रखा है। उसमें से राशि दी जा सकती है।'
गौरतलब है कि सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज में 80 करोड़ लोगों को पांच किलो गेहूं या चावल तीन महीने तक मुफ्त देने, मनरेगा के तहत मजदूरी में 20 रुपये की बढ़ोतरी, महिला जनधन खाताधारकों को तीन किस्तों में 1500 रुपये देने आदि की घोषणा की है। वित्त मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार मनरेगा के तहत मजदूरी बढ़ने से 13.62 करोड़ परिवार को लाभ होगा।
राजकोषीय घाटे की अधिक चिंता करने के बजाय सरकार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को कुछ पैसा और पर्याप्त राशन उपलब्ध कराने के प्रबंध करे।
उनका कहना है कि इस समय काम-धाम ठप है ऐसे में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की दर बढ़ाने से उन्हें तत्काल कोई राहत नहीं मिलने वाली है। उनके खाते में धन होने से पाबंदी हटने के बाद बाजार में मांग पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
वैसे खाद्यान्न भंडार के मामले में सरकार के पास इस समय इफरात में स्टाक पड़ा है। नियमों के तहत देश में मार्च तक 2.1 करोड़ टन (रणनीतिक भंडार समेत) के बफर स्टॉक के मुकाबले गेहूं और चावल के लगभग 5.85 करोड़ टन भंडार थे। जबकि नई फसल के लिए खरीद प्रक्रिया फिर से शुरू होने वाली है।
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